श्रीनगर (गढ़वाल). गैरसैण को राज्य की स्थायी राजधानी बनाने की मांग राज्य निर्माण के बाद से ही उठती रही है. उत्तराखंड में इस मामले में नवनिर्वाचित भाजपा सरकार का रवैया भी राज्य में पूर्व में बनी कांग्रेस-भाजपा की सरकारों जैसा ही नजर आ रहा है. गैरसैण स्थायी राजधानी के मामले को लेकर रविवार को भाकपा माले की ओर से प्रेस को एक बयान जारी किया गया है जिसमें उत्तराखंड की नई रावत सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए गये हैं.

बयान भाकपा माले की राज्य कमेटी के सदस्य इंद्रेश मैखुरी ने कहा “मुख्यमंत्री त्रिवेद्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली सरकार और विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल बयान दे रहे हैं कि गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया जाएगा.उत्तराखंड आन्दोलन के समय से ही आन्दोलनकारियों और जनता की मांग रही है कि गैरसैण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाया जाए.लेकिन राज्य में बनने वाली भाजपा-कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा ही इस मसले को लटकाए रखा है. नयी सरकार का गैरसैण में ग्रीष्मकालीन राजधानी की बात कहना, परोक्ष रूप से गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाने से इंकार करना ही है. यह किसी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता है.”

उन्होने कहा, “तेरह जिलों के छोटे से प्रदेश को कतई दो राजधानियों की आवश्यकता नहीं है. यह सार्वजनिक धन की बर्बादी है. ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन-दो राजधानियां, औपनिवेशिक अवधारणा है. आजादी के सत्तर साल बाद सरकारों का वही राग अलापना यह दर्शाता है कि शासन सत्ता चलाने के मामले में वे आज भी अंग्रेजों के रास्ते का ही अनुसरण करते हैं.” उन्होने आगे कहा, “दो राजधानियों की यह अवधारणा जनता के लिए भारी दिक्कत और नए भ्रष्टाचार का सबब बनेगी. जम्मू-कश्मीर इस बात का उदाहरण है कि राजधानियों की अदला-बदली के चलते जनता को भारी तकलीफों और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है.”

मैखुरी ने आगे कहा, “सत्ताधारी चूँकि देहरादून छोड़ना नहीं चाहते इसलिए वे नित नए शिगूफे छोड़ते रहते हैं.त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार और विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल का गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का बयान ऐसा ही हवाई शिगूफा है. कांग्रेस के लोगों का यह कहना कि गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाया जाए और देहरादून को शीतकालीन राजधानी,हास्यास्पद है. एक तरह से भाजपा सरकार द्वारा कही बात को ही कांग्रेस के लोग घुमा कर कह रहे हैं. गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाने से कमतर किसी कदम को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.यदि इस मांग को किसी तरह से पीछे धकेलने की कोशिश होगी तो इसके खिलाफ जनता सड़कों पर उतरेगी.”

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