पटेल और उनके RSS से सम्बन्ध; जब संघ को बैन किया

पूरा भारत आज सरदार पटेल की 145वीं जयंती मना रहा है. वल्लभभाई झावेरभाई पटेल आजाद भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे. उन्होंने ऐसे समय में देश को संभाला, जब देश एक सूत्र में नहीं बंधा हुआ था. सरदार पटेल ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में रहते हुए देश की आजादी की लड़ाई लड़ी. वे पेशे से एक वकील भी थे. उनके मजूबत इरादों के कारण उन्हें लौह पुरुष भी कहा जाता है.

पिछले कुछ सालों की राजनीती में सरदार पटेल का नाम काफी बार एकता के प्रतीक के रूप में लिया जाने लगा है. सत्ता पक्ष और विपक्ष ने उन्हें अपना आदर्श बताने की बहुत कोशिशें भी की हैं. इसके अलावा जनता के एक सेक्शन में ये धारणा भी बनी कि पटेल के साथ अन्याय हुआ था क्यूंकि उनका प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था लेकिन आखिरी समय में बन गए जवाहरलाल नेहरू. इस सेक्शन का मानना ये है कि अगर नेहरू की जगह वो देश के प्रधानमंत्री होते, तो भारत आज कहीं ज्यादा मजबूत होता.

इस धारणा को बेहतर जानने के लिए हम फिर कभी इतिहास के पन्नों को पलटायेंगे फिलहाल आज हम बात करने वाले हैं सरदार पटेल और उनके RSS से संबंधों की .

सरदार पटेल पर सबसे बड़ा आरोप लगता है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पक्षधर थे. उन्हें संघ का बचाव करने वाले संघ समर्थक के तौर पर जाना जाता है. हिंदू महासभा की स्थापना 1915 में और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई. लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि उस समय वल्लभभाई इस विचारधारा के प्रति आकर्षित हुए थे.

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इन संगठनों के बारे में सरदार ने विभाजन के दौरान और ख़ासकर गांधी की हत्या के बाद अपने विचार ज़ाहिर किए थे.

(Patel And RSS) आइये जानते हैं कि गांधी की हत्या से पहले RSS पर पटेल क्या सोचते थे?

सरदार पटेल हिंदूवादी, पारंपरिक और राष्ट्रवादी थे. संघ भी हिंदुत्व की बातें करता है. पटेल भले खुद कांग्रेसी रहे हों, मगर उन्हें RSS से परेशानी नहीं थे. उनकी नजर में संघ देशभक्त था. जनवरी 1948 में उन्होंने गांधी की हत्या से पहले कहा था-

आप डंडे के जोर पर किसी संगठन को नहीं कुचल सकते. डंडा तो चोरों और डकैतों के लिए होता है. संघ तो देशभक्त है. उसे अपने देश से प्यार है. बस उनके सोच की दिशा थोड़ी भटक गई है. कांग्रेस के लोगों को उन्हें प्यार से जीतना होगा.

संघ पर प्रतिबंध

महात्मा गांधी की हत्या के बाद पटेल ने 4 फरवरी 1948 को आरएसएस पर प्रतिंबध लगा दिया था. उस वक्त वो देश के गृह मंत्री थे. हालांकि तकरीबन डेढ़ साल बाद ये बैन हटा भी दिया उन्होंने. मगर RSS की विचारधारा और गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए पटेल ने ये भी साफ कर दिया कि संघ राजनीति में हिस्सा नहीं ले पाएगा.

27 फरवरी, 1948 को नेहरू को भेजी गई अपनी चिट्ठी में पटेल ने लिखा था-

गांधी की हत्या में RSS शामिल नहीं थी. ये काम हिंदू महासभा के एक कट्टर धड़े का था, जो सीधे सावरकर के नेतृत्व में काम कर रहा था. उसी ने ये साजिश बनाई. मगर गांधी की हत्या का स्वागत किया संघ और महासभा ने. ये लोग गांधी की विचारधारा, उनकी सोच के सख्त खिलाफ थे. मगर इसके अलावा मुझे नहीं लगता कि संघ या हिंदू महासभा के किसी और सदस्य पर इस अपराध का इल्जाम लगाना मुमकिन है. RSS के अपने पाप और अपराध हैं, जिनका उसे जवाब देना है. मगर ये काम उन्होंने नहीं किया.

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जब मुखर्जी को दिया था प्रतिबंध हटाने की मांग पर जवाब

जनसंघ की स्थापना करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जुलाई 1948 में पटेल को एक चिट्ठी लिखी. इसमें आरएसएस से प्रतिबंध हटाने की मांग की गई थी. इस पर पटेल ने 18 जुलाई 1948 को जवाब दिया कि महात्मा गांधी की हत्या का मामला कोर्ट में है इसलिए वो इसपर कुछ नहीं कहेंगे. हालांकि, पटेल ने अपने पहले के बयानों का हवाला देते हुए साफ कर दिया कि भले ही गांधी हत्या में संघ का सीधा हाथ नहीं था लेकिन संघ के कारण ऐसा माहौल बना जिससे गांधी की हत्या हुई. पटेल ने आगे लिखा कि संघ की गतिविधियां सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए जोखिम भरी थीं.

पटेल के कारण हुआ था एक भारत श्रेष्ट भारत का सपना पूरा

15 अगस्त, 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें भारत संघ में सम्मिलित हो चुकी थीं, जो भारतीय इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि थी. जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब वहां की प्रजा ने विद्रोह कर दिया तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और इस प्रकार जूनागढ़ को भी भारत में मिला लिया गया. जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया.