शून्य से कई डिग्री से नीचे तापमान और 7-8 फुट वर्फ के नीचे दबे क्षेत्र और ध्वस्त संचार व यातायात व्यवस्था के बीच रहने वाले लाहौल-स्पिति के लोगों की राजनीति, सम शीतोष्ण तापमान व हर प्रकार के संचार एवं यातायात सुविधा युक्त क्षेत्र कुल्लू में आज कल खूब ज़ोरों पर चल रही है। कुछ नेता व्यक्तिगत संपर्क बनाने के चक्कर में प्रवासी लाहौल-स्पिती (स्पिती तो सिर्फ चुनाव के लिए) वालों के घरों में आ जा रहे हैं और बैठकें और परामर्श कर रहे हैं। दूसरी तरफ समाज सेवा के नाम पर भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।

यहां पर कुछ बातों का खुलासा आम आदमी के हित में किये देना आवश्यक लगता है। पहली बात तो यह कि हिन्दी भाषा की कहावत अनुसार काठ की हांडी बार-2 नहीं चढ़ती। क्योंकि कुछ नेताओं ने क्षेत्र के लोगों और अपने निर्वाचकों को एक बार नहीं कई बार मूर्ख बनाया है। जिसके कारण उनके अपने निकट के लोग भी उनसे किनारा करना चाहते हैं।

इसके अलावा कुछ लोग जनजातीय रिवाजों, संस्कृति के नाम पर हिन्दुत्ववादी जिसमें हिमालय क्षेत्र का बुद्धवाद भी शामिल है, के रिवाजों और संस्कृति को लादने के प्रयास में हैं। मैं कई बार लिख चुका हूं कि यह ‘धार्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण’ सदा ही कमजोरों, गरीबों, दलितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों तथा सीमांतों के लिए अहितकर प्रमाणित होता है।

मुझे यह भी याद है कि एक समय ऐसा भी था जब लाहौल (स्पिती) की राजनीति में चुनावी जलूस भी निकलते थे तो गांव के बड़े लोग उसमें सबकी भागीदारी सुनिश्चित करवाने के लिए ‘लाछक’ (जुर्माने) का ऐलान करते थे। जिससे कि कोई भी घर उस जलूस में गैर हाजिर न हो सके। मेरे समुदाय के लोगों तो एक और बेगार करनी होती थी, जुलूस के आगे-2 नगाड़े आदि पीटते हुए चलना होता था। वह स्थिति अपने आप नहीं बदल गई। उसके लिए एक लंबे संघर्ष की आवश्यकता पड़ी और जिसमें बहुत से लोगों का योगदान रहा है। जिनमें प्रमुख हैं स्व॰ मुंशी सजे राम,स्व. ठाकुर शिव चंद, बहन लता ठाकुर, वीर सिंह झुड़ी तथा एडवोकेट खुशाल चंद शर्मा आदि।

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क्या लाहौल (स्पिती) एक बार फिर उसी स्थिति की तरफ बढ़ने की तैयारी कर रहा है? लाहौल-स्पिती, विशेषकर लाहौल के नेता, राजनेता, बुद्धिजीवी (जिनमें मैं भी शामिल हूं) लाहौल में रह गए, बुजुर्गों, महिलाओं, गरीबों और घरों में नौकर रखे गए गोरखों और झारखंड, बिहार आदि के बाल मजदूरों की राजनीति कुल्लू जैसे पर्यटन स्थल के आला स्थानों पर बैठ कर करते हैं। पता चला कि पीछे लाहौल-स्पिती कांग्रेस पार्टी की एक बड़ी बैठक जनजातीय भवन भुंतर में हुई और भाजपा की कुल्लू शहर में। जिनमें इस साल के अंत में होने वाले चुनावों की रणनीतियां तय की गई और बड़ी राजनैतिक योजनाएं भी बनाई गई।

मेरा मानना है कि राजनीति एक संजीदा विषय और पूर्णकालिक कार्य है। विशेषकर उस व्यक्ति के लिए जो अपने आप को क्षेत्र का प्रतिनिधि बनने के योग्य समझता है। ऐसा नहीं कि अपने व्यवसाय से फुसर्त मिले तो लोगों के मामलों पर ध्यान देने की कृपा करे। ऐसा भी नहीं कि विधान सभाओं या पंचायतों या संसद में अपने ही व्यवसाय से जुड़ी या एक विशेष वर्ग, ट्रेड से जुड़ी हुई बातें उसमें रखे। उसे जिस पद/स्थान के लिए चुना गया है उसके हर कार्य में हिस्सा लेना चाहिए, उपस्थित रहना चाहिए और बैक बैंच पर बैठकर ऊंघने के बजाय सक्रिय भाग लेना चाहिए।

एक अन्य बात आज के दिन राजनीति की परिभाषा सिर्फ चुनाव जीतना हो गई है, इसी लिए लोग इसे ‘पॉलिटिक्स इज़ ए डर्टी गेम’ कहते हैं। लेकिन राजनीति ऐसी नहीं है, इसका अर्थ इससे बहुत गहरा है और यह सदा गला काट प्रतिस्पर्धा का विषय भी नहीं होती। यह तो लोगों की सुविधा, सुरक्षा और समाज में व्यवस्था बनाए रखने का एक नायाब इज़ाद है। हां! जिसे हम राजनीति समझते हैं असल में वह कूटनीति है, जिससे किसी सिद्धांत, मर्यादा, और नैतिकता की उम्मीद नहीं होती, जबकि राजनीति में इन सब का अस्तित्व रहता है।

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जनजातीय दलित संघ द्वारा इस बार ‘महिला अधिकार अभियान चलाया गया है। हम चाहते हैं कि एक बार महिलाओं को भी अवसर दिया जाना चाहिये। क्योंकि महिलाओं की जनसंख्या कुल आबादी का आधी है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’, के एक लेख ‘द व्हाइट हाऊस फ्रस्ट्रेशन’ में लिखा गया है कि किसी अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति ने इतनी जल्दी अपनी लोकप्रियता नहीं खोई जितनी कि ट्रम्प ने। सिर्फ 70 दिनों के अंदर वह दो बार फेल हुए पहला‘हेल्थ केयर बिला’, दूसरा कुछ मुस्लिम देशों के लिए अमेरिका को बंद करना। ट्रम्प साहब को अब पता चल चुका है कि सरकार चलाना या राजनीति करना सीएमडी बन कर कंपनी चलाने से अलग और कठिन कार्य है। अभी तीसरी बार जज के मामले में भी संदेह जताया जा रहा है। इसके अतिरिक्त भी ट्रम्प साहब ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान NATO को अप्रचलित करार दिया था। आज उसने NATO के बारे में कहा है- ‘मैंने कहा था यह अप्रचलित, अब यह अप्रचलित नहीं है।‘ चीन को करेंसी का चालाक कहा था, अब कह रहे हैं, वह करेंसी का चालाक नहीं है। इसी प्रकार रूसी राष्ट्रपति, पुतिन, निर्यात-आयात बैंक तथा अमेरिकी सेना के बारे में भी ‘यूटर्न’ ले चुके हैं।

जैसा कि मैंने पीछे कहा था कि राजनीति एक संजीदा और पूर्णकालिक कार्य है। इसे एक बार फिर दोहराता हूं। इस विषय में 2012 में जारी अपील की प्रति भी प्रस्तुत कर रहा हूं।

 

 लाल चंद ढिस्सा 

(पूर्व ICS व समाज सेवक)