एक सप्ताह से अधिक का समय हो गया है, देश के पर्यटक क्षेत्र ज़िला कुल्लू के मुख्यालय कुल्लू के साथ लगती पंचायत मौहल के लोग ‘कचरा डम्पिंग’ के विरोध में आंदोलनरत हैं। बताया गया कि इस मामले में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने भी कुल्लू नगर पंचायत को कचरे के उचित प्रबंधन के आदेश दिये थे। क्योंकि यह कचरा कुल्लू नगर पंचायत क्षेत्र से इकट्ठा करके वहां पिरडी गांव, मौहल में डाल दिया जाता है। जबकि इस गांव या पंचायत का इससे किसी भी तरह कुछ लेना देना नहीं है। एनजीटी के आदेश के बावजूद ज़िला का प्रशासन इसकी व्यवस्था करने में असमर्थ रहा। क्योंकि यहां प्रशासन के नाम पर सिर्फ साहबों के टूर, मंत्रियों व वीआईपी लोगों की आवाभगत और सरकारी (जनता) पैसे को बांटना भर समझा जाता है। तमाम बड़े छोटे बड़े अफसरों और कार्यालयों के सामने बड़ी-2 कारों की भीड़ खड़ी होती है, गुजरना तक कठिन होता। अब जब पंचायत के लोग धरने पर बैठ गए तो साहब लोगों ने धारा 144 लगा दी। जैसे कि वहां कोई बड़ा उपद्रव होने जा रहा हो। क्योंकि धारा 144 कानून और व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा होने पर लगाई जाती है। सीधे-सादे गांव वाले, स्कूल के बच्चे कह रहे हैं कि कुल्लू के सेठों, व्यापारियों, बाबुओं का कचरा हमारे आंगन में लाकर न फेंका जाये। जिसके लिए देश के एक कानूनी अभिकरण ने भी आदेश रखे हैं।
यहां पर मोदी और उनके ‘स्वच्छता अभियान’ में पागल हुए जा रहे लोग भी कहीं नहीं दिखते। क्या यही ‘स्वच्छता अभियान’ है कि अपने घर का कूड़ा-कचरा उठाकर दूसरे के घर में फेंक दो। एक और महत्वपूर्ण बात कि मैं जब कुल्लू जाता हूं तो रोज एक पिकअप वैन कचरा इकट्ठा करते हुए मिलती है। वह काम भी तो कोई कंपनी या एजेंसी करती होगी। यदि ऐसा है तो प्रशासन ने क्या यह समझौता कर रखा है कि वह बाजार का कचरा ले जाकर मौहल में फेंक आए। या फिर उसके सही प्रबंधन की व्यवस्था की जाने की शर्त भी है।
इस आंदोलन को मौहल पंचायत के लोगों का संयुक्त नेतृत्व चलाया जा रहा है। अब तो इस आंदोलन को अन्य संस्थाओं का समर्थन भी मिल रहा है। आंदोलन के नेतृत्व ने कहा है वे कुल्लू प्रशासन और नगरपालिका के विरुद्ध एनजीटी अवमानना की याचिका डालेंगे।
उधर भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। बताया गया है कि कचरे के प्रबंधन में हर महीने 3.5 लाख रुपये व्यय किए जाते हैं फिर भी पिछले दो-तीन सालों में कचरे का पहाड़ बड़ा होता गया?
पीछे भी मैंने यहीं (सोशल मीडिया) में लिखा था कि मनाली में कचरे के प्रबंधन की कोई ठीक और उचित व्यवस्था नहीं है। मनाली से तीन चार कि.मी. पहले रांगड़ी नाम के स्थान पर कचरे का पहाड़ बन गया है और दिल्ली की तरह बदबू मारता है क्या यह व्यवस्था, यह विकास, यह शासन-प्रशासन कुल्लू मनाली जैसे स्थानों में भी कचरे का पहाड़ खड़े करना चाहते हैं? यह कोई छोटा सवाल नहीं है, कुल्लू जैसे पहाड़ी, प्राकृतिक सौंदर्ययुक्त और प्रदूषण रहित के क्षेत्र के संदर्भ में। यह विकास कहां ले जाएगा? विकास के इस मॉडल पर भी सोचना आवश्यक है। इस कार्य को किसी सरकार, शासन-प्रशासन पर नहीं छोड़ा जा सकता। इसे आम जनता को ही हल करना होगा।
वैसे भी हिमाचल प्रदेश इसी प्रकार के अपराधों, आपदाओं के मामलों के कारण राष्ट्रीय स्तर पर समाचारों में होता है। जैसे चीते की खाल का व्यापार, भांग चरस, पानी की कमी, प्लास्टिक की दरिया, सरकारी कर्मचारी की दिन दहाड़े हत्या, गैर कानूनी और निर्माण, सरकार से मान्यता पाये बाबों, स्कूल के बच्चों को दिये जाने वाले छात्रवृति में घोटाले आदि के कारण ही समाचारों के राष्ट्रीय पन्नों पर होता है।