कुछ बच जाये
तुम्हारी लूट
खसूट
उत्पात और
आगजनी से
देश का, यदि
तो
बिखेर देना उसे
इस अनाथ देश के
खेतों,
कारखानों
शहरों, बाज़ारों
गांव देहातों
गरीबों, अछूतों
और
तुमसे अलग
पहचान वालों के
जलते, मिटते
झौंपड़ों
टूटते, बिखरते
परिवारों,
समाजों पर
लोहे के जहाजों
से
आसमान की
ऊंचाइयों से,
गणतन्त्र दिवस
पर ।