12 अगस्त, 2017 कि मध्य रात्री के समय ज़िला मंडी के मंडी-पठानकोट राजमार्ग पर मंडी और जोगिंद्रनगर के बीच कोटरूपी नाम के स्थान पर भूमि कटाव के कारण घटी दुर्घटना में 50 के लगभग लोगों की मौत हो चुकी है। यह दुर्घटना मेरे लिए कुछ अधिक भारी पड़ी। क्योंकि उन 50 मृतकों में एक मेरा साथी, सहयोगी, मित्र एवं एक समय पांगी में मेरा संपर्क देवेन्द्र शर्मा भी था।
समाचार दिल्ली से बेटे ने दिया। इधर-उधर से समाचार की पुष्टि हुई तो यादें 1992-93 तक पीछे चली गई। कारण था उन्हीं दिनों हम लोगों ने सदप्रयास (सदाचरण एवं प्राकृतिक-परिवेश यामपाल संघ) नाम की एक सामाजिक संस्था की स्थापना की थी। जिसके उद्देश्य थे पर्यावरण, प्रदूषण, नशे, एड्स तथा सामाजिक न्याय के क्षेत्र में कार्य करना। ध्यान रखें तब तक सामाजिक संस्थाएं गैर सरकारी संस्थाएं नहीं बनी थी। तब तक उन के अंदर वह बहुत कुछ बचा हुआ था जिसे आज कचरा समझा जाता है यानि कुछ सिद्धांत, नैतिक मूल्य और सामाजिक दायित्व बोध। फरवरी, 1993 में हमने इस संस्था को नगर कैसल, नगर के पते पर कुल्लू से पंजीकृत करवाया। यद्यपि उपरोक्त उद्देश्यों को लेकर मैं और मेरे साथी काफी पहले से काम कर रहे थे। मेरे साथियों में मुख्य थे स्व. रुपेन्द्र सिंह, प्यार चंद वर्मा, डॉ. फैके कुल्लू के तत्कालीन मुख्य चिकित्साधिकारी, भारतीय नेवी से रिटायर्ड कैप्टन भण्डारी आदि।
उपरोक्त साथियों में प्यार चंद वर्मा भी भारतीय सेना से रिटायर्ड थे और यहां सरवरी में उन्होंने हार्डवेयर की नई-2 दुकान खोली थी। वैसे मूलरूप से वह गांव शेऊर, पांगी, ज़िला चंबा के रहने वाले थे और सेना से आने के बाद अपनी दुकान खोल कर काम कर रहे थे। उनकी दुकान मेरे निवास के रास्ते में पड़ती थी इसलिए आमतौर पर उनके दुकान पर रुकना होता था। वर्मा जी भी मेरे ही स्वभाव के व्यक्ति थे और वे भी समाज और पर्यावरण के प्रति चिंतित रहते थे। उनकी दुकान पर हमारी इस प्रकार के विषयों पर चर्चा होती रहती थी और अधिकतर हमारी चर्चा के दौरान वहां पर कोई न कोई व्यक्ति मौजूद रहता था। 1992 के अंतिम दिनों में इसी तरह की चर्चा के दौरान एक दिन एक शिक्षित नौजवान भी वहां था। हमारी चर्चा को वह बहुत ध्यान से सुन रहा था। लगता था जैसे वह कोई निष्कर्ष निकालना चाहता हो। बीच-2 में कभी-2 कोई प्रश्न कर अपनी उत्सुकता और रुझान का प्रमाण दे देता था। चर्चा के समापन पर वर्मा जी ने उस युवक का परिचय मुझसे करवाया। पता चला कि उस युवक का नाम देवेन्द्र कुमार शर्मा है और वह पांगी, ज़िला चंबा के रेई गांव का रहने वाला है, राजकीय महाविद्यालय चंबा में पढ़ता है और हाल ही में बीए की परीक्षा देकर आया है।
मैं उपरोक्त उस युवा से काफी प्रभावित हुआ और मुझे लगा कि उसके अंदर समाज के लिए कुछ करने की भावना, इच्छाशक्ति और सामर्थ्य सभी कुछ है। मैंने उसे भविष्य में मिलते रहने के लिए कहा और उसने भी हामी भर दी। फिर मिलना जारी रहा जब तक कि वह अपने घर पांगी नहीं चला गया। उन मुलाकातों से मैंने पता लगा लिया था कि उसका राजनैतिक क्षेत्र में घुसने का भी इरादा है। इस बात को लेकर हमारे संपर्क में लगातार बने रहे। 1993 फरवरी में सद्प्रयास की स्थापना की गई और मुझे एक मंच मिल गया, जिसके आधार पर मैं राजनीति और समाज कार्यों के क्षेत्र में अपने और संस्था को स्थापित कर सकूँ। सामाजिक क्षेत्र में पर्यावरण, प्रदूषण, नशे, एड्स आदि में कार्य चलते रहे और राजनीति में हमने मुख्य उद्देश्य बनाया सामाजिक-आर्थिक न्याय। उसी बीच 1993 के नवंबर माह में हिमाचल प्रदेश की विधान सभा के लिए चुनाव होने नियत थे। हालत कुछ ऐसे बने कि जनता दल के तीनों घटक जद(स), जद(अ) तथा जद(समाजवादी) जिसके नेता क्रमश: एस आर बोम्मई, अजित सिंह और चंद्रशेखर थे, के एकीकरण का निर्णय हो गया और अंत में जनता दल युनाइटेड बन गया।
प्रदेश में चुनाव करवाने के लिए एक कमेटी का गठन हुआ और तय हुआ कि उसमें छ: सदस्य होंगे। जो अन्य बातों के अतिरिक्त प्रदेश में वामदलों से भी पूर्ण समझौते आदि करेंगे और उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। क्योंकि उससे पहले भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा गया था लेकिन अब धर्म निरपेक्ष पार्टियां अलग हो गई थी। राज्य चुनाव कमेटी में ठा. रणजीत सिंह (ऊना), कैप्टन प्रताप चौधरी (कांगड़ा) दोनों जद(स) से, श्यामा शर्मा (सिरमौर) और बीडी लखनपाल (हमीरपुर) दोनों जद(समाजवादी) तथा डीआर दुग्गल (शिमला) एवं ल.च. ढिस्सा (लाहौल-स्पीति) दोनों जद(अ) से शामिल किए गए। लेकिन यह कमेटी शुरू से ही बंट गई थी। क्योंकि रणजीत सिंह के अपने कुछ राजनैतिक हितों के कारण वह कभी भी कमेटी के साथ नहीं रहे। शेष पांचों सदस्यों ने बड़े मेहनत और ईमानदारी से पूरा कार्य निभाया।
जैसे कि वामदलों के साथ तय हुआ था प्रदेश की विधान के कुल 68 सीटों में 17 वामदलों के लिए छोड़नी थी और 51 पर जनता दल के प्रत्याशी दिये जाने थे। ज़िला चंबा की पाँच सीटों में से दो सीपीआई के हिस्से गई। शेष तीन सीटों में भरमौर (एसटी) से देवेन्द्र, भटियात से सोहणा मोहम्मद तथा राजनगर (एससी) से चुन्नी लाल के नाम अंतिम किए गए। लेकिन उस समय दिल्ली में पार्टी टिकट पर एक महत्वपूर्ण घटना और घटी। पार्टी के अध्यक्ष बोम्मई साहब थे तो पार्टी टिकट के फॉर्म पर हस्ताक्षर करने के लिए प्राधिकृत व्यक्ति थे मधु दंडवते। मुझे कुल छ: टिकट खाली (बिना नाम) दिये गए जिस पर मुझे नाम भरने थे। उनमें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित तीन सीटें, दो कुल्लू ज़िला की तथा एक चंबा ज़िला की अनुसूचित जाति के आरक्षित सीट। हिमाचल की चुनाव कमेटी के छ: सदस्यों में से चार सदस्य रणजीत सिंह, प्रताप चौधरी, श्यामा शर्मा तथा लखनपाल स्वयं चुनाव लड़ने वाले थे। शेष हम दो में से दुग्गल जी अपनी अधिक आयु के कारण सक्रिय नहीं रह सकते थे। अब मैं बचा मुझे ही भाग दौड़ करनी थी। उपरोक्त छ: खाली टिकटों में से कुल्लू के टिकट तो उदोदास और रुपेन्द्र को दिये गए। किन्नौर (एसटी) का टिकट रतन मंजरी के नाम प्रेस में आने के बाबजूद यंगदास को देना पड़ा। भरमौर (एसटी) के टिकट के लिए देवेन्द्र का नाम मैंने दिल्ली से ही घोषित कर दिया था। टिकट लेकर मैं कुल्लू पहुंचा तो पता चला देवेन्द्र चंबा चला गया क्योंकि भरमौर का नामांकन चंबा में भरा जाना था। मैं भी पीछे से चंबा पहुंच तो पाया कि देवेन्द्र ने आजाद प्रत्याशी के रूप में नामांकन भरा है, लेकिन वह भूमिगत हो गया था या कर दिया गया था और मुझे नहीं मिल सका। इसलिए जनता दल का पार्टी टिकट भरमौर की एक महिला सुनिता ठाकुर को देना पड़ा। उस घटना के बाद लगभग एक वर्ष तक हमारा संपर्क नहीं हो सका। उसके बाद वह मिला तो बहुत सी चीजें साफ हुई। क्यों वह चंबा में मेरे से नहीं मिला आदि। तब तक उसने कांग्रेस ज्वाईन कर ली थी। क्योंकि उसके चाचा विशंबरदास उस समय रेई पंचायत के प्रधान भी थे और पांगी से कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण सदस्य भी थे। देवेन्द्र के दादा गौरीदास अपने समय के प्रसिद्ध ‘लिखणियार’ या डाक्यूमेंट राइटर थे। लेकिन देवेन्द्र क्योंकि वाम विचारधारा से प्रभावित थे, इसलिए कांग्रेस में रहते हुए भी सामाजिक आंदोलनों में बराबर भाग लेता रहा। इस दौरान देवेन्द्र ने कांग्रेस के पांगी ब्लॉक के प्रधान, रेई पंचायत के प्रधान और बीडीसी के उपाध्यक्ष पद पर काम किया। परंतु सबसे महत्वपूर्ण यह कि देवेन्द्र प्रौढ़ शिक्षा अभियान, साक्षरता अभियान एवं आज के सर्व शिक्षा अभियान के साथ शिद्दत से जुड़ा ही नहीं रहा बल्कि पांगी जैसे अति कठिन व दूर के क्षेत्र के एक उदाहरण बन रहा।
लेकिन पार्टी या स्थानीय स्वशासन के उपरोक्त पदों पर कार्य करने के बाबजूद वह सामाजिक आंदोलनों से जुड़े ही नहीं अपितु कई आंदोलनों का तो उसने नेतृत्व भी किया। उनमें महत्वपूर्ण आंदोलन शिक्षा के गिरते स्तर के विरूद्ध एक लम्बी भूख हड़ताल भी थी, जिसमें पूरी पांगी घाटी ने पार्टी लाइन तोड़कर उसका साथ दिया। उसके अतिरिक्त देश के अन्य भागों की तरह हिमाचल प्रदेश भी शासन-प्रशासन भी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है। बल्कि अनुसूचित क्षेत्र तो इस मामले में कुछ अधिक आगे रहे हैं। पांगी के अंदर अफसरों राजनेताओं से मिलकर कुछ लोग करोड़पति बन गए हैं जबकि आम जनता आज भी सड़क के दियाड़ीदारी में नाम दर्ज करवाने के लिए भी रिश्वत देने को मजबूर है। देवेन्द्र ने भ्रष्टाचार के विरूद्ध भी आंदोलन किया। इस बीच देश में एक कानून बना सूचना का अधिकार। देवेन्द्र ने उस कानून के अंतर्गत पांगी के तमाम विभागों के बजट और धनराशि के व्यय की सूचना मांगी। पहले तो इस प्रकार की सूचना दी ही नहीं गई, किसी तरह शिमला से राज्य सूचना आयोग के दखल से सूचना मिली तो पता चला कि सूचना अठाईस हज़ार (28000) पृष्ठों की है। जिसके लिए उन्हें दो रुपये प्रति पृष्ट की दर से छप्पन हज़ार (56000/-) रुपये जमा करवाने पड़े। लेकिन कुछ दिनों बाद पांगी के मुख्यालय किलाड़ में प्रशासन के मुख्य भवन में आग लग गई और सरकारी रिकार्ड….?
वह जब-2 कुल्लू आता तो मुझे अवश्य मिलता था। उपरोक्त घटना के बाद जब हमारी बात हुई तो पता चला कि सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त सूचना का कोई सार्थक प्रयोग नहीं किया जा सका है। इसलिए मैंने सुझाव दिया था कि इतनी सूचना का प्रयोग शेष कुछ नहीं तो कुछ लिखने के लिए तो किया ही जा सकता है। इसलिए उस सूचना को प्रयोग कर कुछ ठोस लिखना चाहिए, जो सही में एक महत्वपूर्ण अभिलेख प्रमाणित होगा, कम से कम भ्रष्टाचार पर तो अनिवार्य रूप से।
देवेन्द्र के साथ चर्चा का मुख्य विषय यह रहा कि पांगी में व्यवस्था का एक मॉडल स्थापित किया जाये। जिसके अन्दर समाज-अर्थ-राजनैतिक व्यवस्था समाहित हो। जिसमें स्वास्थ्य-शिक्षा-रोजगार मुख्य विषय हों और समाज-आर्थिक न्याय राजनीति के नीति निदेशक तत्व हों। मॉडल एक ‘कम्यून’ किस्म की व्यवस्था हो, जैसे कि मैंने मध्य प्रदेश के सरगुजा में बजरंग लाल अग्रवाल के नेतृत्व में लोक स्वराज मंच द्वारा चलाये जा रहे अभियान ‘सामाजिक समस्या अनुसंधान’ में कभी देखी थी, लगभग उसी तरह की। जिसमें व्यक्ति की पहचान भले ही ‘नंबर’ में हो लेकिन उसका अस्तित्व ‘मानव’ का ही रहे। एक सजीव, संवेदनशील समाज व्यवस्था। जिसके अन्दर पवित्र-अपवित्र, छोटा-बड़ा, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब के बीच में स्वाभाविक अंतर तो रहे लेकिन खाई न बने, जिसे पार करने के प्रयास को दंडित किया जाये या कि जो कभी पार ही न की जा सके और जो व्यक्ति के जन्म पर आधारित होकर रह जाए। इस विषय में अधिक सार्थक और गहराई से चर्चा तब हुई जब देवेन्द्र ने कांग्रेस का मण्डल (पांगी) अध्यक्ष के पद से त्याग पत्र दे दिया। उस त्याग पत्र का कारण भी उसके द्वारा अपने को उस स्थान पर फिट न पाना था। उस पद पर वह बहुत असहज अनुभव किया करता था। क्योंकि उस पर रहते हुए उसकी कथनी और करनी में फर्क पड़ जाता था। राजनैतिक आका लोग नीचे के कार्यकर्ताओं का भरपूर शोषणपूर्ण प्रयोग करते थे। देवेन्द्र जैसा व्यक्ति अपने आप को यहां बहुत ही दयनीय एवं अप्रिय स्थिति में पाता था।
लेकिन कुछ दिनों बाद पता चला कि वह फिर वापस कांग्रेस का मण्डलाध्यक्ष बन गया है। इसलिए हमारी चर्चाएँ तो खत्म ही हो गई, मुलाकातें भी कम होती चली गई। उसके साथ याद करने योग्य मुलाक़ात फरवरी, 2012 में तब हुई जब उसने मेरी पुस्तक ‘संविधान के सामाजिक अन्याय-1’ की एक प्रति ली और बड़े शिष्टाचार सहित उसकी कीमत जो 250/- रुपये थी, मुझे दी। उसके बाद एक लंबी चुप्पी और फरवरी, 2014 में एक दिन वह मेरे बाशिंग वाले नए निवास पर पहुंच गया। उस समय वह कांग्रेस का नेता था। लेकिन दिल का दर्द उतना ही साथ लिए हुए। तब डेवेन्द्र को मैंने अपनी उपरोक्त पुस्तक की एक प्रति हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री को देने के लिए दी। जिसके साथ पुस्तक को सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत खरीदने के लिए प्रार्थना पत्र भी था। उसके बाद आज तक कभी भी न तो बात हो सकी, न मुलाक़ात।
लेकिन होनी को कोई टाल नहीं सकता कल दिल्ली से फोन पर पता चला कि उस दुर्घटना का एक शिकार वह भी था। उसकी आत्मा की शांति की कामना करता हूं (यदि ऐसा है तो) उसके घरवालों को इस दु:ख की घड़ी को निभाने की शक्ति मिले (वैसे तो वह अविवाहित था, पता चला मां जो कुल्लू में बीमार रहती थी, भी कुछ समय पहले दुनिया छोड़ चुकी हैं)। (मेरी अप्रकाशित पुस्तक ‘मेरी जीवन यात्रा’ के एक अध्याय से)
ल.च. ढिस्सा
समाज कार्यकर्ता, लेखक, पूर्व सिविल सर्वेंट, संपादक सद्प्रयास
संस्थापक अध्यक्ष, सद्प्रयास, जदस, अनुसंधान