एडल्टरी यानी स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंधों से जुड़ी धारा-497 (एडल्टरी) पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दे दिया है. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों वाली संविधान पीठ ने 158 साल पुराने एडल्टरी कानून को खारिज कर दिया और कहा कि जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है, वो अंसवैधानिक है. लोकतंत्र की खूबी ही मैं, तुम और हम की है. व्यभिचार कानून के तहत ये धारा हमेशा से विवादों में रही है और इसे स्त्री-पुरुष समानता की भावना के प्रतिकूल बताया जाता है. क्योंकि, इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं.
CJI दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर शामिल हैं. आइए, जानते हैं एडल्टरी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 5 बड़ी बातें:-
1.सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने व्यभिचार कानून को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं है. एक लिंग के व्यक्ति को दूसरे लिंग के व्यक्ति पर कानूनी अधिकारी देना गलत है. इसे तलाक का आधार बनाया जा सकता है, लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता
2.एडल्टरी पर फैसला सुनाते हुए CJI दीपक मिश्रा ने कहा कि संविधान की खूबसूरती यही है कि उसमें ‘मैं, मेरा और तुम’ सभी शामिल हैं. CJI ने कहा कि एडल्टरी अपराध तो नहीं होगा, लेकिन अगर पत्नी अपने लाइफ पार्टनर के व्यभिचार के कारण खुदकुशी करती है, तो सबूत पेश करने के बाद इसमें खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला चल सकता है.
3.बेंच ने कहा कि चीन, जापान, ब्राजील में एडल्टरी अपराध नहीं है. यह पूरी तरह से निजता का मामला है. एडल्टरी ‘अनहैप्पी मैरिज’ की वजह नहीं सकता लेकिन अनहैप्पी मैरिज का नतीजा हो सकता है. ऐसे में अगर इसे अपराध मानकर केस करेंगे, तो इसका मतलब दुखी लोगों को सजा देना होगा.
4.चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि एक महिला को समाज की इच्छा के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता. संसद ने भी महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा पर कानून बनाया हुआ है. चीफ जस्टिस ने कहा कि पति कभी भी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है.
5.बेंच में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एडल्टरी कानून मनमाना है. यह महिला की सेक्सुअल चॉइस को रोकता है और इसलिए असंवैधानिक है. महिला को शादी के बाद सेक्सुअल चॉइस से वंचित नहीं किया जा सकता है.
किसने दायर की थी याचिका?
केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दाखिल करते हुए आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और जनवरी में इसे संविधान पीठ को भेजा गया था.
एडल्टरी पर अब तक क्या था कानून?
धारा 497 केवल उस पुरुष को अपराधी मानती है, जिसके किसी और की पत्नी के साथ संबंध हैं. पत्नी को इसमें अपराधी नहीं माना जाता. जबकि आदमी को पांच साल तक जेल का सामना करना पड़ता है. कोई पुरुष किसी विवाहित महिला के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, लेकिन उसके पति की सहमति नहीं लेता है, तो उसे पांच साल तक के जेल की सज़ा हो सकती है. लेकिन जब पति किसी दूसरी महिला के साथ संबंध बनाता है, तो उसे अपने पत्नी की सहमति की कोई जरूरत नहीं है.
क्या हैं आपत्तियां?
इस कानून के खिलाफ तर्क दिया जाता है कि एक ऐसा अपराध जिसमें महिला और पुरुष दो लोग लिप्त हों, उसमें केवल पुरुष को दोषी ठहराकर सजा देना लैंगिक भेदभाव है. इसके अलावा महिला के पति को ही शिकायत का हक होना कहीं न कहीं महिला को पति की संपत्ति जैसा दर्शाता है, क्योंकि पति के अलावा महिला का कोई अन्य रिश्तेदार इस मामले में शिकायतकर्ता नहीं हो सकता.
साभार;news18