Sadprayas

कश्मीर मेरा फिर भी मैं कश्मीर की बात नहीं कर सकता, क्यों…?

कशमिरा जाणा जरूरा भला ओ ।

कशमिरा देश सुहाऊणा भला ओ।

कशमिरा कसु ठारी भोणा भला ओ।

कशमिरा जोबन सुहाऊणा भला ओ।

कशमिरा हाऊसेरा देश भला ओ।

 

साथियो! काश! कि मैं इस गीत को आप लोगों को गाकर सुना पाता। यह पूरा गीत है, कश्मीर पर है, जिसे मैं बचपन में सुना करता था, अपने पूर्वजों से जिनमें लगभग सब इस जहां को अलविदा कह गए हैं। वे बिल्कुल अनपढ़, गरीब लेकिन जीवंत लोग इस गीत को गाते थे और ढोल या नगाड़े की थापों पर रात-2 भर नाचते थे। हां! कश्मीर मेरा पड़ौसी प्रदेश है और वहां के लोग मेरे पड़ौसी। मेरे क्षेत्र लाहौल के लोगों में काफी लोग कश्मीर से आकर यहां बसे हुए हैं।

इस पूरे गाने में कश्मीर के बारे में कहा गया है। उसकी खूबसूरती, उसके सुहावनेपन, उसकी संस्कृति, उसके यौवन और न जाने किन-2 बातों और चीजों का वर्णन किया है। गीत बनाने वाले, गाने वाले कह रहे हैं कश्मीर अवश्य जाना है, क्योंकि वह एक बहुत ही सुहावना देश है, जहां का यौवन सुहावन है, जहां की हर चीज सुंदर और सुहावनी है। तब मेरे लोग इस गीत पर पूरे जोश-ओ-खरोश से नाचते थे, महिला-पुरुष सब। लेकिन आज कश्मीर पर बात करना गुनाह हो गया है। उसकी बर्बादी पर बात करना अपराध हो गया है। तत्काल देशद्रोही करार किया जाता है। आज किस हालत में है कश्मीर, किस तरह जल रहा है….? लेकिन हम बोल नहीं सकते डर है कि कहीं प्रशांत भूषण की तरह लात-घूंस खाने न पड़ जायें, प्रोफेसर राणावत की तरह नौकरी खोने की नबत न आ जाये, कहीं प्रो. मेनन की तरह स्पष्टीकरण न देना पड़ जाये…..? बात तो सिर्फ वर्दीधारी और देशभक्त ही कर सकते हैं कश्मीर की, वह भी अनियंत्रित भाषा में, अहंकार भरे शब्दों में, बंदूक का डर दिखा कर….?

हां! मेरे लोग, मैं भी गया हूं उस सुहावने देश में। पड़ौस के क्षेत्र पांगी (चंबा) होकर संसारी नाला जो हिमाचल और कश्मीर की सीमा है, से कई कि.मी. की सीधी चढ़ाई (पैदल) और पहला गांव इस्तियारी, फिर नीचे उतरकर गांव सोल और वहां के स्वादिष्ट आलू चटनी के साथ…..। आगे गुलाबगढ़ नीलम की खान फिर कश्मीर की पहली पुलिस चौकी और एक बड़ा गांव अठोली……. । आगे चिनाब के पार दूसरे किनारे भद्रवाह का क्षेत्र। जहां की भाषा और संस्कृति मेरे से मिलती-जुलती। मेरी संस्कृति का आधार….। वही रंग, वही रूप, वही मस्ती…..। लेकिन आज उस तरफ जाने के लिए आप के पास सरकारी बाबुओं के हस्ताक्षर युक्त बहुत के दस्तावेज़ होने अनिवार्य हैं। साल 1999 से जा नहीं सका उस ओर। हिम्मत नहीं होती है, आतंकियों का डर कम, वर्दीधारियों की पुछाई और सफाईयों की झिझक अधिक। अपने ही देश में  जाने के लिए आदेश पत्र चाहिए।

मुझे नहीं मालूम ऐसा क्यों होता है…..? रात को इस गीत को पूरा गाया, हालांकि मेरा कंठ बहुत भददा  है, फिर भी आई याद को दोहराया और आंखों से आंसू छलक पड़े……? दिल हल्का करने के लिए आप से सांझा कर रहा हूं। एक विनती भी कि कश्मीर जल रहा है, रो रहा है…..?

 

 लाल चंद ढिस्सा 

(पूर्व ICS व समाज सेवक)

Exit mobile version