जैसे-जैसे डिजिटल उपकरण हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनते जा रहे हैं, बच्चों के मोबाइल और टैबलेट के उपयोग पर चिंता बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि मोबाइल फोन शिक्षा और मनोरंजन का साधन हो सकते हैं, लेकिन बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करना उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं कि यह क्यों जरूरी है।
1. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों में चिंता, अवसाद और मूड स्विंग जैसी मानसिक समस्याओं से जुड़ा है। डिजिटल कंटेंट और नोटिफिकेशन्स से मिलने वाली निरंतर उत्तेजना उनके मानसिक स्वास्थ्य पर दबाव डाल सकती है, जिससे उनकी नींद प्रभावित होती है और तनाव बढ़ता है। शारीरिक स्वास्थ्य पर भी इसका असर पड़ता है; अधिक समय तक स्क्रीन देखने से आँखों में खिंचाव, खराब मुद्रा और शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है, जिससे मोटापे का खतरा भी बढ़ता है।
2. सामाजिक और संज्ञानात्मक कौशल पर प्रभाव
बच्चों को सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए आमने-सामने संवाद और खेल-कूद की जरूरत होती है। जब वे मोबाइल फोन में खोए रहते हैं, तो वे ऐसे वास्तविक अनुभवों से दूर हो जाते हैं जो उन्हें सहानुभूति, सहयोग और संवाद सिखाते हैं। इसके अलावा, डिजिटल कंटेंट की तेज और चमकदार प्रस्तुति उनकी एकाग्रता और याददाश्त पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
3. ऑनलाइन सुरक्षा और जोखिम
इंटरनेट जानकारी का खजाना है, लेकिन इसके साथ कुछ खतरनाक जोखिम भी जुड़े हैं जैसे कि साइबर बुलिंग, अनुचित सामग्री और ऑनलाइन शिकारी। बिना माता-पिता की निगरानी के, बच्चे अनजाने में हानिकारक सामग्री तक पहुँच सकते हैं या अजनबियों से संपर्क कर सकते हैं, जो उनके लिए खतरे का कारण बन सकता है।
4. विशेषज्ञों की सिफारिशें
स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना चाहिए और केवल शैक्षिक कार्यक्रमों को सीमित समय तक देखने की अनुमति देनी चाहिए। बड़े बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम एक से दो घंटे तक सीमित करना चाहिए और इस पर निगरानी रखनी चाहिए। माता-पिता को भी सलाह दी जाती है कि वे स्वयं कम स्क्रीन टाइम का पालन करें और बच्चों को शारीरिक, सामाजिक और रचनात्मक खेलों के लिए प्रोत्साहित करें।
निष्कर्ष
मोबाइल उपकरण निश्चित रूप से शिक्षा में सहायक हो सकते हैं, लेकिन बच्चों के स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। तकनीक और पारंपरिक खेल के बीच संतुलन बनाए रखने से बच्चों का मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास बेहतर हो सकता है।