साथियो! एक खुलासा, लाहौल का गांव जाहलमा, जो मेरा पुश्तैनी गांव भी है और जन्म स्थान भी, की मुख्य कृषि भूमि यानि ‘जाहमलिङ/यमलिङ’ के 200-250 बीघे में मेरे पास एक इंच भी भूमि नहीं है, यदि कुछ है तो दूसरे गांव की सीमाओं में।

फिर भी मुझे अपने गांव से बहुत प्यार और लगाव है।

ऐसे में दिल्ली से आकर कोई देश भक्ति और संस्कृति सिखाये तो दिल करता है कि उसकी टांग मरोड़ कर उसके मुंह में घुसेड़ दूं।

इसका यह अर्थ कदापि नहीं है इस प्रकार का मैं अकेला व्यक्ति हूं इस गांव, क्षेत्र व देश में। इस महान देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पास अव्वल तो अपना कहने को कुछ भी नहीं है, यदि कुछ है भी तो बरायनाम ही है।

इस गांव के बारे एक जनश्रुति प्रचलित है जिसे इस गांव के एक सेवानिवृत अध्यापक ने भी सत्यापित किया है। जनश्रुति इस प्रकार है कि समय था जब गांव की भूमि के काफी बड़े हिस्से पर लुहार परिवार का स्वामित्व था। लेकिन आज उनके पास उसमें कुछ भी बचा हुआ नहीं है। कहा जाता है कि एक बार उस परिवार ने पुण्य कमाने के इरादे से ‘पुञ्ज’ नामक एक बड़ा धार्मिक आयोजन किया। जिसमें मेहमानों को परोसने के लिए एक बड़े बर्तन (लम्ज़ा) में घी पिघलाया गया। लेकिन उच्च जाति के कुछ लोगों ने षडयंत्रवश उसमें एक मरी हुई बिल्ली डाल दी और शोर मचाया कि बहुत बड़ा पाप हो गया और उसका प्रायश्चित होना चाहिए। प्रायश्चित तय हुआ कि आयोजन के स्थान से तीर चलाया जाये और वह तीर जहां तक पहुंचता है उसके अंदर की समस्त भूमि दान कर दी जाये। तीर चलाया गया, सब भूमि चली गई, पाप धुल गया, पुण्य मिल गया और लुहार समुदाय लूट गया, अपना कहने लिए भी कुछ नहीं बचा…..? आज उस गांव में, मैं अकेला नहीं जिसकी यह दशा है। गांव के कुल 48 परिवारों में 14-15 परिवारों की गांव की मुख्य कृषि भूमि में एक इंच भी जगह नहीं है। यहां पर स्पष्ट रूप से बताना चाहूंगा कि ये समस्त परिवार इस गांव के यानि अनुसूचित जनजातीय दलित हैं।

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इस देश की अधिक जनसंख्या भूखे-प्यासे, आधे पेट, नंगे बदन, बेकार, फुटपाथ पर, खुले आसमां तले काट देती है,देश को बेचने का काम नहीं करती। इसी देश में ऐसा भी है कि 60% लोगों के हिस्से में देश की संपति का सिर्फ 2% हिस्सा है। फिर भी वे देश की खुफिया सूचनाएं विदेशियों को नहीं बेचते। देश की दौलत को काले तरीकों से कमा कर विदेशी बैंकों में जमा नहीं करवाते। ये लोग देश के सरकारी बैंकों के लाखों करोड़ रुपयों के ऋणों को भी नहीं डकारते। बल्कि बड़े ठगों द्वारा जारी तिरंगे की प्रतिकृति (replica) को भी बड़े उत्साह और खुशी से हर आने जाने वाले के सीने पर टांगते हुए दिख जाते हैं।

इतना होने के बाबजूद कभी यदि समानता, आज़ादी, न्याय और लोकतंत्र की बात करते हैं तो उन्हें देशद्रोही करार दिया जाता है।

देश के 1% लोगों ने इस देश की संपति के 60% भाग पर कब्जा कर रखा है। फिर जब बात होती है गरीबों, दलितों,आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और सीमांत लोगों के अधिकारों की तो बड़े लोगों के साथ-2 चुने गए प्रतिनिधियों की भी भृकुटियां तन जाती हैं। इन लोगों को देश पर और उन परजीवियों पर बोझ माना जाता है। दिखावे के लिए उनके भलाई या विकास के नाम पर कुछ किया भी जाता है तो उन सब कार्यों के शुरुआत से पहले अपने हितों का ध्यान रखा जाता है। ‘गरीबी हटाओ’, ‘गरीब कल्याण योजना’, ‘अनुसूचित जाति/जनजातियों,महिलाओं तथा अन्य कमजोर वर्गों की तमाम योजनायेँ इसका जीवंत उदाहरण हैं। और भी कि इन गरीबों को काम चोर, निक्कमा, आलसी यहां तक कि अपराधी भी घोषित कर दिया जाता है। हमारे यहां एक कहावत है- ‘शंडेर घोऊ खलिरी गइणि’ यानि कि बड़े के लिए सब संभव है।

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देश की समस्त संपति, जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर कुछ ही लोगों का कब्जा हो, तो भला ये गरीब क्या, कहां और कैसे काम करेंगे। उसके अलावा भी देश की चुनी हुई सरकारें सिर्फ मलाईदार लोगों के हित में सोचने लगे और देश की तमाम सामाजिक-आर्थिक नीतियां उसी से प्रेरित होकर बनाई जाएं तो क्या होगा…..? जिस देश की समस्या बेरोजगारी हो उस देश में अधिक से अधिक मशीनीकरण और कम्पयूटरीकरण को विकास का आधार और इन्फ्रासट्रक्चर के नाम पर बड़े-2 और केंद्रीकृत कार्यक्रम चलाने वाले और अमेरिका को अपना आदर्श मान कर चलने वाले अंधे नहीं हो सकते बल्कि अंधों का अभिनय करने वाले होते हैं। देश की अधिक से अधिक सम्पति कुछ ही हाथों में पहुंचा दी जाये, क्या यही विकास है? शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, लोगों की खुशी, संतुष्टि, शांति आदि के लिए आज के विकास में कोई जगह नहीं है। दो शब्दों जीडीपी और सेंसेक्स का शोर सुनाई पड़ता है, बहुत ऊपर चला गया, परिणाम तो भूखे बढ़ रहे है, अशांति ही फ़ेल रही है। उस जीडीपी वृद्धि और सेंसेक्स ऊपर जाने का क्या अर्थ है?

इस देश में बहुत से बुद्धजीवी, अर्थशास्त्री और अन्य लोग हैं जो ट्रम्प और मोदी को ‘प्रकाश स्तम्भ’ मानते हैं। जो बात तो तकनीक की करते हैं लेकिन धमकियां देते हैं चौड़े सीने की। ट्रम्प जो पूरी दुनियां को लूट कर अब अमेरिका को बचाने की बात कर रहा है। महिलाओं और गौरी नस्ल से अलग लोगों के लिए उसकी क्या मानसिकता है, यह जग जाहिर है।