गांव के पंडित ब्रह्मानन्द और केबु चिनाल के बीच बहुत गहरी दोस्ती थी। एक दूसरे को भाई कह कर बुलाते थे। गांव के हर सामूहिक कार्य करने के लिए एक साथ जाते थे। एक बार गांव की सिंचाई की कुहल (नहर) की मुरम्मत काम था। सब लोग एक साथ जा रहे थे, ब्रह्मानन्द और केबु भी।
पंडित के पास एक गधा था उस दिन गधा भी साथ में था। रास्ते में अचानक पंडित जी बोले-‘भाइ! कार: थोतु था, ओ’, जिसका अर्थ है, भाई! गधे को छूना मत। हैरान हो कार केबु चिनाल ने पूछा- ‘छरि-ए भाइ’ मतलब, क्यों भाई? कार: ओ कुर्जि शोद तो’। कि गधे पर दिन का खाना बंधा हुआ है- पंडित ने कहा।